दीप दान

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वैदिक संदर्भ:
“तमसो मा ज्योतिर्गमय” (बृहदारण्यक उपनिषद 1.3.28)

अनुवाद: मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, जो आध्यात्मिक स्पष्टता और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने में दीप दान की भूमिका का प्रतीक है।

उद्देश्य: नकारात्मकता को दूर करने और आध्यात्मिक प्रकाश प्राप्त करने के लिए

विवरण:
दीप दान में अंधकार को दूर करने और आध्यात्मिक और भौतिक रूप से ज्ञान प्राप्त करने के लिए दिव्य संस्थाओं या पवित्र नदियों को दीप (दीप) अर्पित करना शामिल है। यह कार्य अज्ञानता और नकारात्मकता को दूर करने, समृद्धि, शांति और दिव्य कृपा को आमंत्रित करने का प्रतीक है। दीप दान को त्योहारों, ग्रहणों या पूर्णिमा (पूर्णिमा के दिन) के दौरान विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यह पूर्वजों की भलाई, उनके आशीर्वाद का आह्वान करने और पैतृक कर्म ऋणों को शुद्ध करने के लिए भी किया जाता है।

पौराणिक संबंध:
स्कंद पुराणके अनुसार, दीपक जलाने और भक्तिपूर्वक अर्पित करने से देवता प्रसन्न होते हैं और पापों का नाश होता है, जिससे मुक्ति (मोक्ष) मिलती है। भगवान कृष्ण ने कार्तिक पूर्णिमाके दौरान दीपक जलाने के महत्व पर जोर दिया, इसे ईश्वर को प्रकाश अर्पित करने के रूप में माना।

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